तन्हाई के पलों में, मैं अपने आप से बातें करता हूँ, माना कि तेरी नजर में शायद कुछ भी नहीं हूं मैं, “मिरी ख़्वाहिश है कि आँगन में न दीवार उठे जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ…” दोहरी शक्सियत रखनें से इन्कार है हमें, तन्हाई की रातों https://youtu.be/Lug0ffByUck