अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥ प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥ अर्थ- त्रयोदशी (चंद्रमास का तेरहवां दिन त्रयोदशी कहलाता है, हर चंद्रमास में दो त्रयोदशी आती हैं, एक कृष्ण पक्ष में व एक शुक्ल पक्ष में) को पंडित बुलाकर https://shivchalisas.com